Wednesday, April 24, 2019

नरेंद्र मोदी का 'नॉन पॉलिटिकल इंटरव्यू' लेने वाले अक्षय कुमार की पूरी कहानी

आप इस बात पर 'नाममुकिन' कहने जा रहे हैं तो रुकिए. एक लाइन और पढ़िए, ''फ़ुल पैक चुनावी प्रचार के बीच पीएम नरेंद्र मोदी का नॉन पॉलिटिकल इंटरव्यू.''

अब इस 'नामुमकिन' में आपको कुछ मुमकिन दिख रहा है तो बधाई, क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है?

पत्रकारों से दूर रहने वाले नरेंद्र मोदी ने बीते पांच सालों में देश को कई 'पत्रकार' दिए. मोदी में 'एक फ़कीरी सी' देखने वाले प्रसून जोशी की अपार सफलता के बाद इसी कड़ी में नए पत्रकार- नमस्कार, मैं अक्षय कुमार.

अक्षय कुमार ने नरेंद्र मोदी का एक नॉन पॉलिटिकल इंटरव्यू करने का दावा किया है. सोशल मीडिया पर लोग भले ही इंटरव्यू और इसकी टाइमिंग का मज़ाक उड़ा रहे हों. लेकिन अक्षय कुमार ने मोदी की जो कहानी सुनवाई, वो काफ़ी लोगों के लिए नई है.

मोदी की अनसुनी कहानी को यहां विराम देते हैं और आपको कहानी बताते हैं जिसमें चांदनी चौक का लड़का एक्टिंग के रास्ते पत्रकारिता में हाथ आज़माते हुए देश के प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने तक की यात्रा को तय करता है.

दिल्ली के चांदनी चौक की पराठे वाली गाली. भाटिया साहब के घर से चिल्लाने की आवाज़ आई.

ये आवाज़ हरि ओम भाटिया की थी. बेटा पढ़ाई में कमज़ोर था. पिता ने गाल पर तमाचा लगाकर पूछा- पढ़ेगा नहीं तो क्या करेगा?

ग़ुस्से में लड़का जवाब देता है- मैं हीरो बन जाऊंगा.

9 सितंबर 1967 को कश्मीरी मां और पंजाबी पिता के घर पैदा हुआ ये लड़का राजीव भाटिया था. जो आने वाले सालों में ग़ुस्से में कही ये बात अक्षय कुमार बनकर सच करने वाला था.

राजीव के पिता पहले आर्मी में थे. फिर अकाउंटेंट की नौकरी करने लगे. कुछ वक़्त बाद भाटिया परिवार दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो गया. राजीव का दाख़िला माटूंगा के डॉन बॉस्को स्कूल में करवाया गया.

राजीव का खेल-कूद में ख़ूब मन लगता था. पड़ोस के लड़के को कराटे करते देख दिलचस्पी पैदा हुई. 10वीं क्लास की पढ़ाई पूरा करते ही पिता से ज़िद करके राजीव मार्शल आर्ट सीखने बैंकॉक चला गया. ब्लैक बेल्ट हासिल की.

पांच साल बाद कोलकाता-ढाका में ट्रैवल एजेंट, होटल का काम करते हुए ये लड़का दिल्ली पहुंचा. कुछ वक़्त लाजपत राय मार्केट से कुंदन की ज्वैलरी ख़रीदकर मुंबई में बेची.

लेकिन मन फिर मार्शल आर्ट्स की ओर ले गया. लिहाज़ा बच्चों को मार्शल आर्ट सिखाना शुरू किया. उस ज़माने में महीने की कमाई होती थी- क़रीब चार हज़ार रुपये.

राज्यसभा टीवी को दिए इंटरव्यू के मुताबिक़, किसी की सलाह पर राजीव भाटिया मॉडलिंग की राह चल पड़ा. फ़र्नीचर की दुकान पर हुए पहले फ़ोटोशूट के लिए राजीव भाटिया को 21 हज़ार रुपये का चेक मिला. राजीव को इस काम से मिला चेक तो भाया लेकिन उस पर लिखा नाम कम जचा.

फिर राजीव भाटिया ने अपना नाम बस यूं ही बदलकर अक्षय कुमार कर लिया.

इत्तेफ़ाक़ समझिए कि नाम बदलने के अगले ही दिन अक्षय को बतौर मुख्य हीरो अपनी पहली फ़िल्म मिल गई. ये फ़िल्म थी 1991 में आई सौगंध. हालांकि इससे पहले वो एक फ़िल्म 'आज' में भी छोटा रोल कर चुके थे.

अब भले ही अक्षय कुमार की 'चौकीदार' नरेंद्र मोदी से क़रीबी बढ़ गई हो, मगर ऐसा भी वक़्त था जब एक चौकीदार ने अक्षय का रास्ता रोका था.

30-32 साल पहले मुंबई के एक घर के बाहर अक्षय ने अपना फ़ोटोशूट करवाया. अक्षय ये फ़ोटोशूट घर के भीतर चाहते थे लेकिन चौकीदार ने जाने नहीं दिया.

आज वो घर अक्षय कुमार का है. इस घर को ख़रीदने तक का अक्षय कुमार का सफ़र लंबा रहा.

एक बार अक्षय को मॉडलिंग के सिलसिले में बंगलुरु जाना था. लेकिन सुबह के सात बजे को अक्षय शाम का सात समझे और फ़्लाइट छूट गई.

बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार ने बताया था, ''फ़्लाइट छूटने के बाद मैं पूरा दिन परेशान रहा. शाम को एक मॉडल कॉर्डिनेटर को अपनी तस्वीरें दिखाने गया. तभी मुझे प्रमोद चक्रवर्ती मिले. तस्वीर देखकर वो बोले- फ़िल्म करोगे? मेरे हामी भरते ही उन्होंने मुझे पाँच हज़ार का चेक दिया.''

इसके बाद अक्षय के हिस्से कई फ़िल्में आईं.

खिलाड़ी सिरीज़, मोहरा, इक्के पे इक्का, दिल तो पागल है, अफ़लातून, संघर्ष, धड़कन, अंदाज़, बेवफा, हेरा-फेरी, ओएमजी, बेबी, रुस्तम, पैडमैन, टॉयलेट एक प्रेम कथा, जॉली एलएलबी.... क़रीब 150 फ़िल्में.

अक्षय एक साथ कई-कई फ़िल्में किया करते हैं. इसका नतीजा कई बार ऐसा भी रहा कि अक्षय की 16 फ़िल्में लगातार फ्लॉप हुईं.

कहा जाता है कि शूटिंग के दौरान कोई डायलॉग बोर्ड पर लिखकर खड़ा रहता है, जिसे देखकर अक्षय डायलॉग बोलते हैं.

इसकी वजह अक्षय बताते हैं- रीटेक होगा तो बेवजह लोगों का टाइम वेस्ट होगा.

अक्षय ने समाज को संदेश देनी जैसी फ़िल्में बहुत कम की हैं. वो खुद कहते हैं- मैं कर्मशियल सिनेमा करने आया हूं.

अक्षय कुमार एक बार काम मांगने के लिए राजेश खन्ना के पास भी गए थे. वो फ़िल्म चंकी पांडे को मिली थी. अक्षय को तब निराश लौटना पड़ा. लेकिन राजेश खन्ना से मांगने का ये सिलसिला 2001 तक चला.

अक्षय ने राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया से ट्विंकल खन्ना का हाथ मांगा. इस बार राजेश खन्ना इंकार नहीं कर पाए. साल 2001 में अक्षय और ट्विंकल खन्ना की शादी हुई.

अक्षय ने बीबीसी को बताया था, ''मैं लेडी किलर नहीं हूँ, मैं उन्हें आकर्षित करता हूँ. मैं हर काम को ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूँ. जो कहना है कह देता हूँ और जोड़-तोड़ नहीं करता. कभी-कभी डिप्लोमैटिक भी होता हूँ ताकि दूसरों को कष्ट न पहुँचे. मुझे लगता है कि इन सब चीज़ों से ही महिलाओं और दूसरों को आकर्षित कर पाता हूँ. यह सब शादी के पहले की बात है. शादी के बाद मुझे अपना यह क्राउन किसी दूसरे को देना पड़ा.''

अक्षय ने जिस शादी से पहले की बात की, उसके कई चर्चे आज भी छाए रहते हैं.

रवीना टंडन, शिल्पा शेट्टी, रेखा और भी कई नाम. इन नामों पर अक्षय कुमार ने कभी खुलकर तो नहीं बोला लेकिन फ़िल्मी दुनिया से जुड़े ज़्यादातर लोगों को मालूम था कि अक्षय के कई अफ़ेयर्स रहे थे.

पत्रकार वीर सांघवी को दिए इंटरव्यू में रवीना टंडन ने इस बारे में खुलकर बात की थी.

रवीना ने कहा था, ''जब अपना सिक्का खोटा तो आप दूसरे के बारे में क्या कहेंगे. मेरे लिए ईमानदारी मायने रखती थी. वो चाहते थे कि मैं हर बार ऐसा करूं. मैंने तीन साल ऐसा किया लेकिन फिर मैं हार गई. ये वो लड़का था, जिसने कहा था कि मैं तुमसे ही शादी करना चाहता हूं. तुम में वो सब है जो मुझे चाहिए. हमारी लड़ाइयां होतीं. फिर मनाने के क्रम में हम सगाई करते. हमारी दो बार सगाई हुई. एक बार जब हमारा ब्रेकअप होता तो वो इस बीच किसी और से सगाई कर लेता. मैंने उससे साफ़ कहा- ये कोई खिलौना है क्या कि एक टूट गया तो दूसरा ले आओ.''

Thursday, April 18, 2019

台湾富豪郭台铭参选总统为何梦源妈祖

“妈祖托梦叫我一定要出来”,台湾鸿海集团的总裁,有台湾首富之称的68岁郭台铭,在台湾新北市板桥区的慈惠宫宣示,出马角逐国民党在2020年台湾总统初选。其中,郭台铭称受到妈祖托梦一语,成为台湾乃至华人各界讨论的话题。

郭台铭自言,出生于妈祖庙内,家族都受到妈祖庇佑。在场约50来岁的许姓慈惠宫管理员对BBC中文表示,这间宫本来是木造,后来才扩建,而郭家原本就住在现在财神的位置,郭台铭每年大年初一会准时来此祭拜。

妈祖是台湾社会最普遍的信仰神明,根据传闻与史料,妈祖本名林默娘,出生于10世纪的福建省莆田县,28岁得道成仙,成为守护海上行船的神明。许多400年从福建沿海东渡来台的移民们,也将妈祖信仰传到台湾本土。

台湾民间普遍信仰道教与佛教,宫庙数量在2018年统计,已经超越1.2万间,妈祖庙则超过3000间,建宫庙在台湾中南部甚至是热门生意。面积3.6万平方公里,人口2300万的岛上,这样的规模着实惊人。

在宗教信仰较为盛行的台湾,传统道佛信仰不免成为政治人物在竞选造势场合上拉拢人心的手段。每年在台湾中部举办的“大甲妈祖绕境”活动,吸引超过百万名信众参与时,台湾的国民党与民进党及其他重要政治人物都会与会,有种得宫庙者得天下的气势。

而这样政治与宗教的结合从何而起?目前说法不一。但台湾政治大学国家发展研究所教授李酉潭回忆,过去台湾处于戒严时期时,就有不少地方小型选举,候选人会在当地农村信仰大事,如唱给神明酬神的歌仔戏与感谢的流水席上不断拜票。

后来,台湾政治人物只要到各地,都会去当地有名的庙宇上香,即使在1987年解严后大型选举开放也不例外。传统宗教与政治两方反而有更绵密结合的趋势。

台湾师范大学政治所教授范世平认为,过去国民党虽然是独裁统治,但是不同于无神论的共产党,国民党对宗教没有特别限制。包括蒋介石自己本身也是基督徒,其子蒋经国后来就任总统时也常下乡探访,都会去当地庙宇致意。进而久而久之,让台湾的政治与传统宗教没有区隔。

在郭台铭的言论出来之后,“妈祖开示”是否太过迷信,也成为网络讨论热点。范世平认为,无论言论是否真假,台湾选举一直以来用宗教来动员是不争的事实。“过去李登辉当总统时,他是基督徒,但照样去各大庙宇参拜”,掌握宗教的话语权,成为台湾政治人物的显学。

范世平分析,就算是台湾首富郭台铭,也需要宗教信仰来得到大家的认同。因此,他不意外郭台铭的发言,反过来说,因妈祖信仰是大多数台湾人的共通语言,当郭台铭以妈祖信仰为发言时,自然让许多基层百姓都有“我们是一体的”这种认同感。

这20多年来,台湾的农历新年期间,也常常可以看到政治人物在各大宫庙前发放一元台币(约0.03美元)红包。对于政治人物来说,刻意选在宫庙前造势,也是维持自己政治声望和检验人气的最好方法。

李酉潭认为,宗教是目前在台湾唯一可以超越统独的最大公约数,因为大家都不敢做出对神明不敬的事。不过李酉潭也指出,传统信仰的兴盛,有可能给台湾政治民主化带来挑战。

李酉潭举例,好比中国大陆近来一直盛传的对台统战手法,就是直接拢络台湾地方的宫庙,包括组织免费中国大陆游、金钱赞助等,让很多传统信徒相当动心。

现今的西方民主社会,早期是政教合一、后来改为政教分离。李酉潭认为,台湾社会在套用现今的西方公民社会架构,但同时还是被许多传统情感与宗教思维影响,造成许多人逢事就求神问卜,遇到纠纷就抱着“先情再理后法”的典型心态,无形间让许多政治理念变得难以实施。

肺炎疫情:新冠病毒肆虐全球 伪劣假药趁机捞钱

新型冠状病毒肆虐全球,各地人们都在储备基本药品以备不时之需 唐宁街说, 色情性&肛交集合 因感染新冠病毒住院 色情性&肛交集合 并重症监护的 色情性&肛交集合 首相约翰逊当 色情性&肛交集合 地时间12日中午出院。 色情性&肛交集合 此前, 色情性&肛交集合 约逊发表声明,...